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मौसम आते जाते रहते हैं

पर पहले सा खुमार नहीं

फूल खिले गुलशन गुलशन

पर खुशबू का अंबार नहीं


कदम जब लड़खड़ाने लगे

रहा खुद पे भी ऐतबार नहीं

तुमसे किसने ये कह दिया

मुझे अब तेरा इंतज़ार नहीं।



मं शर्मा (रज़ा)

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