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दिन गुज़र गए
रातें कटी नहीं
ख़ता आँखों की थी
इल्ज़ाम रातों के सर आया
ख़ताएँ और भी थीं
मैं सबसे बरी हुआ
गुनाह इश्क को माना
इल्ज़ाम मुहब्बत के सिर आया।
मं शर्मा (रज़ा)
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दिन गुज़र गए
रातें कटी नहीं
ख़ता आँखों की थी
इल्ज़ाम रातों के सर आया
ख़ताएँ और भी थीं
मैं सबसे बरी हुआ
गुनाह इश्क को माना
इल्ज़ाम मुहब्बत के सिर आया।
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