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माना हमनवा नहीं हम
हमराज तो हैं
जुदा है मंजिल अपनी
हमसफर तो हैं
माना दूरियाँ हैं बहुत
मगर ग़म ये नहीं
सुकून इस बात का है
कुछ अपने दरमियां तो है।
मं शर्मा (रज़ा)
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माना हमनवा नहीं हम
हमराज तो हैं
जुदा है मंजिल अपनी
हमसफर तो हैं
माना दूरियाँ हैं बहुत
मगर ग़म ये नहीं
सुकून इस बात का है
कुछ अपने दरमियां तो है।
मं शर्मा (रज़ा)
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