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लौटा आई है फिर सदा
कहीं से टकराकर
आज फिर मायूस हुआ मैं
तुमको पुकार कर
इतना क्यों ग़ाफिल है तू
क्यों इतना बेखबर
थक चुकी है बहार भी
हर साल आ आ कर ।
मं शर्मा (रज़ा)
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लौटा आई है फिर सदा
कहीं से टकराकर
आज फिर मायूस हुआ मैं
तुमको पुकार कर
इतना क्यों ग़ाफिल है तू
क्यों इतना बेखबर
थक चुकी है बहार भी
हर साल आ आ कर ।
मं शर्मा (रज़ा)
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