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कैसी ये उदासी
ये कैसा जुल्म है
वफा जिसने की
किया उसपे सितम है
दाग गहरों ने दिल के
किया ये करम है
घने सायों में यादों के
अब घुटता दम है ।
मं शर्मा (रज़ा)
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कैसी ये उदासी
ये कैसा जुल्म है
वफा जिसने की
किया उसपे सितम है
दाग गहरों ने दिल के
किया ये करम है
घने सायों में यादों के
अब घुटता दम है ।
मं शर्मा (रज़ा)
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