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कुछ था

तेरे मेरे दरम्यां

जो शायद

अनकहा रह गया


दूरियां कभी

इतनी न थीं दरम्यां

कुछ था शायद

खाई गहरी कर गया।


मं शर्मा (रज़ा)




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