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उलझ उलझ जाते हैं अक्सर
सुलझे सुलझे से कुछ लम्हे
वक्त की शरारत है या फिर
हम ही कुछ बेहुनर हुए ।
मं शर्मा( रज़ा)
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उलझ उलझ जाते हैं अक्सर
सुलझे सुलझे से कुछ लम्हे
वक्त की शरारत है या फिर
हम ही कुछ बेहुनर हुए ।
मं शर्मा( रज़ा)
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