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मैं बेबस सागर सरीखा

तू एक दरिया दीवानी है

मिलना नहीं लिखा फिर भी

अमर अपनी प्रेम कहानी है


चाहा जिसको मिल जाए

ऐसा कोई विधान नहीं

मन मीरा सा बैरागी हो तो

विरह कोई व्यवधान नहीं।


मं शर्मा (रज़ा)

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