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संबंधों की भूलभुलैंया में
अभी खुद को ढूँढ रहा हूँ
रिश्तों के धागे ऐसे उलझे हैं
नित नई गिरह खोल रहा हूँ
कब अपनेपन की वर्षा होजाए
मन का आँगन लीप रहा हूँ
खुशियों की आमद से पहले
एहसासों की बंदनवार सजा रहा हूँ।
मं शर्मा (रज़ा)
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