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चाहत हो तो राधा जैसी
पथराई बैरी अँखियों जैसी
कान्हा सा कोई विरही नहीं
बैरागन ना कोई मीरा जैसी
छोड़ छाड़ कर वैभव सारे
तोड़ ताड़ कर बंधन सारे
जन्म जन्मों के बंधन बाँध
चल पड़ी प्रेम डगर पर।
मं शर्मा (रज़ा)
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