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जीवन में पसरे सूखे को
आँखों की नमी से सींच आए
दर्द ने सींचा जीवन को
फिर भी बबूल उग आए
परती पड़ी धरती के ऊपर
काँटों की उपज लगा आए
पाँवों से जब धूल हटी तो
अनगिनत छाले नजर आए।
मं शर्मा (रज़ा)
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