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नाम है काम है
हर घड़ी आराम है
थोड़ा बहुत आजकल
दुनिया में भी नाम है
और क्या चाहिए
क्यों तू परेशान है
अपनों से हैं दूरियां
दोस्त बने मजबूरियां
नींद नहीं चैन नहीं
खाना पीना हराम है
सोने के पिंजरे में मानो
परिंदे की जान है ।
मं शर्मा (रज़ा)
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