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पल दो पल ठहर जाते
थोड़ा सा संभल जाते
हर पल की आपाधापी से
थोड़ा सा संभल पाते
पल भर की चूक से
जीवन गणित बिगड़ गया
खुशी अर्जित करने चले थे
संतोष गंवा कर चल दिए।
मं शर्मा (रज़ा)
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पल दो पल ठहर जाते
थोड़ा सा संभल जाते
हर पल की आपाधापी से
थोड़ा सा संभल पाते
पल भर की चूक से
जीवन गणित बिगड़ गया
खुशी अर्जित करने चले थे
संतोष गंवा कर चल दिए।
मं शर्मा (रज़ा)
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