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जो अधूरी रह गईं
वो ही हसरतें थीं
जो हासिल हुआ
वो नसीब रहा होगा
अनकही बातों का
लड़खड़ते कदमों का
क्या ही ऐतबार
ज़मीर जानता होगा।
मं शर्मा (रज़ा)
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जो अधूरी रह गईं
वो ही हसरतें थीं
जो हासिल हुआ
वो नसीब रहा होगा
अनकही बातों का
लड़खड़ते कदमों का
क्या ही ऐतबार
ज़मीर जानता होगा।
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