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इतनी ऊँची भी न कर छत घर की
तेरा मेरा मकान दिखाई न दे
अहंकार की इमारत नीची रख
कहीं भीतर का इंसां न दब रहे ।
मं शर्मा (रज़ा)
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इतनी ऊँची भी न कर छत घर की
तेरा मेरा मकान दिखाई न दे
अहंकार की इमारत नीची रख
कहीं भीतर का इंसां न दब रहे ।
मं शर्मा (रज़ा)
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