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तुम ही तो थी
युगों युगों की
जीवनसंगिनी
सहगामिनी
वामांगिनी
सहधर्मिणी
फिर क्यों
अपनों के द्वारा
हर युग में
तुम छली गई
हरबार अग्निपरीक्षा में
धकेली गई ।
मं शर्मा( रज़ा)
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तुम ही तो थी
युगों युगों की
जीवनसंगिनी
सहगामिनी
वामांगिनी
सहधर्मिणी
फिर क्यों
अपनों के द्वारा
हर युग में
तुम छली गई
हरबार अग्निपरीक्षा में
धकेली गई ।
मं शर्मा( रज़ा)
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