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नींद आज फिर
छूकर निकल गई
रात आई और
आ कर ठहर गई
अधूरे ख्वाब पलकों पे
सजे रह गए
आँख आज फिर
झपकना भूल गई।
मं शर्मा (रज़ा)
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नींद आज फिर
छूकर निकल गई
रात आई और
आ कर ठहर गई
अधूरे ख्वाब पलकों पे
सजे रह गए
आँख आज फिर
झपकना भूल गई।
मं शर्मा (रज़ा)
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