
Share0 Bookmarks 28 Reads0 Likes
मैं तुम्हारी सारी कमियों को
दुसाले से ढक लूं
जैसे तुम्हारे ज़ख्मों को
पट्टी लगाकर सहेज लूं
प्यार में प्रेमी यही तो करते हैं
इसमें कहने की क्या बात है।
या तो तुम्हें प्रेम नहीं हुआ
या फिर तुमने जिंदगी महसूस नहीं की
या फिर हो सकता है तुम्हारी चाल ही सियासी हो
क्योंकि दुख, दुख को सहलाता है
कमीं, कमीं को भर देती है लेकिन
तुम्हें ऐतराज़ है मेरी उन कमियों से।
तुम बर्दाश्त नहीं कर सकती मेरी कमियों को,
तुम चाहती हो कि
बर्दाश्त किया जाए तुम्हें
तुम्हारी उजागर कमियों के साथ
तुम सदैव पाना चाहती हो देना नहीं
इसलिए तुम प्रेम में नहीं हो सकती
बस प्रेम की आकांक्षा है तुम्हें
जैसे होती है आकांक्षा किसी वस्तु को पाने की
मेरी होने वाली प्रेयसी
मुझे माफ करना
मैं प्रेम में वस्तु बनकर नहीं रह सकता।
No posts
No posts
No posts
No posts
Comments