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चक्रव्यूह
तुम्हारे जन्म के समय ,
चेहरों की उदासी से शुरू होकर,
तुम्हारे कौमार्य पर
तनती भृकुटियों की रेखा से होते हुए
सदा सुहागन रहो के आशिर्वाद तक,
पंक्ति दर पंक्ति
रचा गया है यह चक्रव्यूह ।
अब जबकि तुम लड़ते लड़तपहुँच चुकी हो भीतर तक।
तो बस यह याद रखो की
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