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इश्क़ ने तेरे वो कमाल किया
मेरी हस्ती को बेमिसाल किया
मेरी तन्हाइयाँ भी गूँज उठीं
जब कभी तुझको हमख़याल किया
चाँद को देखते रहे शब भर
हिज्र को तेरे यूँ विसाल किया
उम्र गुज़री वो आज तक चुप हैं
हमने भी जाने क्या सवाल किया
जिसने जितनी बड़ी उड़ान भरी
उसने उतना ही तय ज़वाल* किया
(*नीचे की ओर गिरना)
हुस्न वालों को आईना देकर
ऐ ख़ुदा तूने क्या बवाल किया
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