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#क्यूं मिली मुझे माफ़ी।
जब मेरी कोई ख़ता नहीं।।
#कर वो ग़ुनाह बेदख़ल।
जिसकी कोई सज़ा नहीं।।
#होगी सहर तरसे उजाले को।
मेरी रातों की तो सुब्ह ही नहीं।।
#नहीं था मुक़द्दर मे शायद।
बज़्म मे प्याला मुझ तक आया नहीं।।
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