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#गुज़र जाती गर होती तू रहगुज़र।
इक क़दम साथ न थी पर अब क्यूँ।।
#आखरी सफ़र करने चले हम तो।
जनाज़े वक़्त छज्जे पर खड़ी अब क्यूँ।।
#खुली आँखों से ढोकरें खाई अंधेरों मे।
चिराग़ लिए राह मे खड़ी पर अब क्यूँ।।
#रिश्तों मे न रहे न रिश्तेदारों मे।
अब तुम्हे निभाना है पर अब क्यूँ।।<
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