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बिछे हैं शूल राहों में मगर रुकना नहीं है
जुनूँ बहता रगों में कह रहा झुकना नहीं है
नही मैं कम किसी से भी जहां को ये बताना
मुझे तूफान बनकर आंधियों को है हराना
बिखरना है नही कुछ कर गुज़रने की है ठानी
लिखूंगा मैं नए अंदाज में अपनी कहानी
बड़ा ज़िद्दी बड़ा ही ढीठ मेरा हौसला है
झुका दूंगा हिमालय भी किया ये फैसला है
पराजय की लकीरों को है माथे से मिटाना
मुझे आता नही डर कर कदम पीछे हटाना
मेरा जज़्बा मेरी हिम्मत ही है मेरी निशानी
लिखूंगा मैं नए अंदाज में अपनी कहानी
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