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मेरे जज़्बात स्याही बन कर काग़ज़ पर उतर रहे हैं
आज रात चांद मुझको और हम चांद को तक रहें हैं
उस के साथ रात कैसे गुज़री कुछ पता ही नहीं चला
सुबह होते ही चांद और हम एक दूसरे से दूर हो रहें हैं
मिलने के लिए ज़माने ने एक कोना भी नहीं दिया हैं
हम दोनों इसी लिए ही अपने ख्वाबों में मिल रहें हैं
किसी गै़र से क्या शिकवा करना कि वो बदल गया
यहां तो सभी लोगों के अपने ही दग़ा कर रहे हैं
पूरे ज़माने को छोड़ कर हम ने उन पर भरोसा किया
और हम को छोड़ कर पूरे ज़माने पर भरोसा कर रहे हैं
सिर्फ़ एक को चाहा 'अंकित' और भी तुम्हें मिल जाएं
यहां पर लोगों का प्यार मिल मिल कर बिछड़ कर रहें हैं
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