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ज़हीर ही ज़हर घोल रहें हैं ज़िंदगी में हमारी
अब हम कैसे ही किसी पर एतबार करते..
ये कसमें वादे जानें वालों को नहीं रोक सकती
लोग छोड़ जाते हैं वो चीज़ जो उनको बेकार लगते..
उसे से दोस्ती टूटने का भी खौफ था हम को
उस से कैसे हम अपनी उल्फत का इज़हार करते..
उस का दौड़ कर आ कर मुझ को छत से झंकना
हम ये कैसे मान ले कि वो हम से प्यार नहीं करते..
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