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आशिक़ हूं मैं कोई आवारा नहीं हूं
सबका हूं मगर अब तुम्हारा नहीं हूं
डर नहीं है किसी को मुझे खोने का
क्या मैं किसी को भी प्यारा नहीं हूं
मेरे जाने से भला कौन उदास होगा
मैं किसी के जीने का सहारा नहीं हूं
दिन भर तो मैं बहुत ही खुश रहता हूं
शाम ढलते ख़ुद को भी गवारा नहीं हूं
रो पड़ता हूं भले ही मैं तन्हाई में पर
लोगों के सामने आह भी भरा नहीं हूं
ये बात अलग जीत के आसार नहीं है
लेकिन ज़िंदगी के जंग को हारा नहीं हूं
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