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“ईमान”
बात जो होती ज़िंदगी की,
तोहफ़े में दे ही देता,
सवाल था ईमान का,
कैसे किसी को छिनने देता?
ख़ून पसीने से कमाई यह दौलत,
बाँट कैसे देता,
तौहमत यह ज़लील करने वाली,
औढ़ कैसे लेता?
नहीं माँगता ऐशों आराम,
भीख़ यह कैसे ले लेता,
सीख़ मिली ग़ुरबत में,
ईमान को भुला कैसे देता?
यह जश्न, यह महफ़िल,
शानो-शौक़त ज़िंदगी के,
सराब ये हराम सब,
कैसे रूह को इन्हें छूने देता?
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