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“एक गरीब”
है तिरस्कृत, है ग्रसित,
निष्कासित सा,
वो समाज का कलंक
एक गरीब, त्रस्त सा।
पूँजीपतियों से दुतकारा
अपने आप सा हारा,
घ्रनित, दूषित, है शोषित
एक गरीब, बेचारा।
ना देखे महल ऊँचे
ना देखे ठाट जीवन के,
रसातल में जी रहा
एक गरीब, कुंठित।
खाने को दाना नहीं,
ना ओढ़न को अँगोछा,
पूस की चाँदनी में
एक गरीब, भूखा, ठिठुरता।
है तम से घिरा हुआ,
दीप आशा का जल रहा,
दूर सभ्यता के मेलों से,
एक गरीब, जी रहा।
ना चढ़ा कभी मोटर पर,
ना करी कभी बैलगाड़ी,
पैदल चलता, ना थकता,
एक गरीब,
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