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पाज़ेब को अपनी खनका ज़रा सा ही

की आये महक तेरे होने की ज़रा सा ही।


बिताए है पल तेरे संग ज़रा सा ही,

पन्नो पे स्याही भी गिरी तो ज़रा सा ही।


ख्वाइश नही

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