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यह जीवन है एक चांद का टुकड़ा
अपनों का यह प्यारा मुखड़ा
इतना न्यारा की तारों सा प्यारा
मां का खूब दुलारा मुखड़ा
दुनिया का गवारा मुखड़ा
अपना एक सहारा मुखड़ा
कुछ पन्नों में सिमट कर बैठा
अच्छे दिनों की यादों में
काली रातों की परछाई में
उड़ने चाहत रखता
पता नहीं कब आग लगी
प्यारे दिन के उन सपनों पे
भूल गए अब अच्छे दिन
मां के खूब दुलारे दिन
बीत गए कब वे दिन
अब अंधियारी की बारी आई
मंज़िल का पीछा करते - करते
किशती भी अब टूट गई
कुछ बातों को सीखा हमने
यह जीवन नाव और धारा है
जो समझ गया वो निकल गया
जो फिसल गया वो डूब गया
यह जीवन है एक चांद का टुकड़ा
अपनों का यह प्यारा मुखड़ा -2
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