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सहमा-सहमा आँख का दरिया 

जाने कब सैलाब हो जाये

 

तुम मिलो तो न मिलो 

मिलो तो ख़्वाब हो जाये 


आओ जो तुम समंदर से मिल कर 

ज़म-ज़म का आब हो जाये 


हो जाओ जलवाफरोश अब 

जंगल की आग हो जाये 


वाक़िफ कर दो मुझे हसरतों से मेरी 

कभी दीदार-ऐ-महताब हो जाये 


वो मसरूफ रहते है इस कदर&

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