जिस समय सावित्रीबाई का पहला कविता संग्रह ‘काव्य फुले’ आया उस समय सावित्रीबाई फुले शूद्र-अतिशूद्र लड़कियों को पढ़ा रही थीं. ज्योतिबा सावित्री ने पहला स्कूल 13 मई 1848 में पहला स्कूल खोला था और काव्यफुले 1852 में आया. जब वे पहले पहल स्कूल में पढ़ाने के लिए निकली तो वे खुद उस समय बच्ची ही थी. उनके कंधे पर ज्यादा से ज्यादा बच्चों को स्कूल तक लाना तथा उन्हें स्कूल में बना बनाए रखने की भी बात होगी. सावित्रीबाई फुले ने बहुत ही सुंदर बालगीत भी लिखे है जिसमें उन्होने खेल खेल में गाते गाते बच्चों को साफ सुथरा रहना, विद्यालय आकर पढ़ाई करने के लिए प्रेरित करना व पढाई का महत्व बताना आदि है. बच्चों के विद्यालय आने पर वे जिस तरह स्वागत करती हैं, वह उनकी शिक्षा देने की लगन को दर्शाता है –
“सुनहरे दिन का उदय हुआ
आओ प्यारे बच्चों आज
हर्ष उल्लास से तुम्हारा स्वागत करती हूं आज”
विद्या को श्रेष्ठ धन बताते हुए वह कहती हैं
विद्या ही सर्वश्रेष्ठ धन है
सभी धन-दौलत से
जिसके पास है ज्ञान का भंडार
है वो ज्ञानी जनता की नज़रो में
अपने एक अन्य बालगीत में बच्चों को समय का सदुपयोग करने की प्रेरणा देते हुए कहती है-
काम जो आज करना है, उसे करें तत्काल
दोपहर में जो कार्य करना है, उसे अभी कर लो
पल भर के बाद का सारा कार्य इसी पल कर लो.
काम पूरा हुआ या नहीं
न पूछे मौत आने से पूर्व कभी
सावित्रीबाई फुले की एक बालगीत ‘समूह’ एक लघुनाटिका के समान लगती है. इस कविता में वे पांच समझदार पाठशाला जाकर पढने वाली शिक्षित बच्चियों से पाठशाला न जाने वाली अशिक्षित बच्चियों की आपस में बातचीत व तर्क द्वारा उन्हें पाठशाला आकर पढ़ने के लिए कहती हैं तो निरक्षर बच्चियाँ जवाब देती है-
क्या धरा है पाठशाला में
क्या हमारा सिर फिरा है
फालतू कार्य में वक्त गंवाना बुरा है
चलो खेलें हमारा इसी में भला है
उन्हीं में से कुछ बच्चियां कहती हैं:
रुको जरा मां से जाकर पूछेंगे चलो सारे
खेल खूद, घर का काम या पाठशाला?
सावित्रीबाई फुले जिन स्वतंत्र विचारों की थी, उसकी झलक उनकी कविताओं में स्पष्ट रूप से मिलती है. वे लड़कियों के घर में काम करने, चौका बर्तन करने की अपेक्षा उनकी पढाई-लिखाई को बेहद जरूरी मानती थी. वह स्त्री अधिकार चेतना सम्पन्न स्त्रीवादी कवयित्री थी.
“चौका बर्तन से बहुत जरूरी है पढ़ाई
क्या तुम्हें मेरी बात समझ में आई?”
इस लघु नाटिका जैसे गीत के अंत में पांचों बच्चियों को शिक्षा का महत्व समझ में आ जाता है और वे पढ़ने के लिए उत्सुक होते हुए कहती हैं:
‘चलो चलें पाठशाला हमें है पढ़ना
नहीं अब वक्त गंवाना है
ज्ञान विद्या प्राप्त कर
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