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दो गुलाब के फूल छू गए जब से होंठ अपावन मेरे
ऐसी गंध बसी है मन में सारा जग मधुबन लगता है।
रोम-रोम में खिले चमेली
साँस-साँस में महके बेला
पोर-पोर से झरे मालती
अंग-अंग जुड़े जूही का मेला
पग-पग लहरे मानसरोवर डगर-डगर छाया कदंब की
तुम जब से मिल गए उमर का खंडहर राजभवन लगता है।
दो गुलाब के फूल॥
छिन-छिन ऐसा लगे कि कोई
बिना रंग के खेले होली
यूँ मदमाए प्राण कि जैसे
नई बहू की चंदन डोली
जेठ लगे सावन मनभावन और दुपहरी साँझ बसंती
ऐसा मौसम फिरा धूल का ढेला एक रतन लगता है।
दो गुलाब के फूल॥
जाने क्या हो गया कि हरदम
बिना दिए के रहे उजाला
चमके टाट बिछावन जैसे
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