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मुझ को यक़ीं है सच कहती थीं जो भी अम्मी कहती थीं - जावेद अख़्तर | Kavishala
November 14, 2022Share0 Bookmarks 59712 Reads1 Likes
मुझ को यक़ीं है सच कहती थीं जो भी अम्मी कहती थीं
जब मेरे बचपन के दिन थे चाँद में परियाँ रहती थीं
एक ये दिन जब अपनों ने भी हम से नाता तोड़ लिया
एक वो दिन जब पेड़ की शाख़ें बोझ हमारा सहती थीं
एक ये दिन जब सारी सड़कें रूठी रूठी लगती हैं
एक वो दिन जब आओ खेलें सारी गलियाँ कहती थीं
एक ये दिन जब जागी रातें दीवारों को तकती हैं
एक वो
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