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कभी एहसास-ए-मंज़िल भी रवानी छीन लेता है
नदी रफ़्तार खोकर ही मुहानों तक पहुँचती है
— हरिओम
तू आँखें बंद करके आग में घी डाल देता है
तो लपटों की ऊँचाई शामियानों तक पहुँचती है
— हरिओम
मुस्कुरा उठता है यादों से तेरी हरइक ख़याल
मेरे पहलू में कभी मायूसियाँ सोतीं नहीं
- हरिओम
अदा से फेर के नज़रें उसने
लगाया दिल मेरा ठिकाने पे
- हरिओम
ज़माने से है यूँ ही बेज़ुबां बेजान बेबस
सुनो देखो ये बुत फ़रियाद के क़ाबिल नहीं है
- हरिओम
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