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कभी एहसास-ए-मंज़िल भी रवानी छीन लेता है
नदी रफ़्तार खोकर ही मुहानों तक पहुँचती है
— हरिओम
तू आँखें बंद करके आग में घी डाल देता है
तो लपटों की ऊँचाई शामियानों तक पहुँचती है
— हरिओम
मुस्कुरा उठता है यादों से तेरी हरइक ख़याल
मेरे पहलू में कभी मायूसियाँ सोतीं नहीं
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