समीक्षा: 'सिया' एक ऐसी फिल्म जो मनोरंजन के लिए बिल्कुल नहीं है! समाज के लिए एक ऐसा आईना है जिसमे सबको अपना चेहरा देखना जरूरी है, जिस देश में रोजाना सैकड़ो लड़कियों और औरतो के साथ बलात्कार होता हो, इंसानियत की परिभाषा हैवानियत में बदलती चली जा रही है! निर्भया जैसे मुद्दों के बाद से भी लोगो के अंदर समझ नहीं आयी, एक व्यक्ति विशेष से लेकर, प्रशासन और मंत्रियों सबकी तरफ से ढील और नजरअंदाजी देखी जा सकती है! सोशल मीडिया और बड़े बड़े मंचो पर बड़ी बड़ी बाते तोह हो जाती है लेकिन जमीनी स्तर पर कुछ भी नहीं होता है, बस बलात्कार का नया किस्सा सुनने को मिल जाता है!
अभी तक सिया को हजारो दर्शक देख चुके है सबका अलग अलग नजरिया भी है लेकिन अगर आपको इस फिल्म ने बैचेन नहीं क्या हो तो उसके केवल दो कारण हो सकते है: पहला आप हृदयविहीन है या आप मानसिक रूप से मृत है! यह फिल्म आपको अंदर तक झकझोर देगी! सभी पात्रों ने पूरा न्याय किया है अपने किरदार के साथ और जिस तरह से फिल्म को बनाया गया है उससे लगता ही नहीं की यह निर्देशक के रूप में मनीष मुंद्रा की पहली फ़िल्म है!कहानी हम और आप से बीच की किसी भी हो सकती है: यह फिल्म सिया (पूजा पाण्डेय) की कहानी है, जिसका चार लोग मिलकर बलात्कार कर देते हैं। यह चारों आरोपी स्थानीय क्षेत्र के विधायक के रिश्तेदार हैं, इसलिए इन आरोपियों का स्थानीय पुलिस भी सपोर्ट कर रही है। फिर सिया के चाचा के दोस्त महेंद्र मल्लाह (विनीत कुमार सिंह) जो कि पेशे से वकील हैं, वो सिया की मदद करने यानी की आरोपियों को सजा दिलाने का फैसला करते हैं। अब सिया और महेंद्र मिलकर आरोपियों को सजा दिला पाते हैं या नहीं, यही सब कुछ बड़ी आसान तरीके से फिल्म में दिखाया गया है।बलात्कार के मुद्दों पर पर पहले भी कई फिल्में बन चुकी हैं, लेकिन 'सिया' को आप अभी तक बनी सभी फिल्मों से अलग पाएंगे। फिल्म की सबसे खास बात यह है कि फिल्म आपको समाधान नहीं बताती बल्कि सिस्टम के बारे में
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