
दिनकर की पुण्यतिथि पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अंकुर मिश्रा (कविशाला संस्थापक) का खुला पत्र

प्रिय प्रधानमंत्री
श्री नरेंद्र मोदी जी,
नमस्कार
हिंदी की निंदा करना बंद किया जाए। हिंदी की निंदा से इस देश की आत्मा को गहरी चोट पहुँचती है।
ईर्ष्या सबसे पहले उसी को जलाती है जिसके हृदय में उसका जन्म होता है। - दिनकर
आशा है आप सकुशल होंगे, देश की सभी परिस्थितियों से अवगत होंगे! देश में आज जो समस्याएं हैं चाहे गरीबी हो, धर्म को लेकर लड़ रहे लोगो की हो, देश में हो रहे दंगो की हो, चाहे महामारी की वजह से बेरोजगार लोगो की हो, चाहे किसानो की हो या फिर चाहे महामारी में मर रहे लोगो की हो, आप अपने मंत्रियो और कर्मचारियों के द्वारा वास्तविकता से अवगत होंगे! प्रधानमंत्री जी आपका बचपन से जो जीवन रहा है वह हम सबको मनोबल देता है, आप जिस मुकाम पर है, वह हमें एक विश्वास देता है की अगर साधारण इंसान देश का प्रधानमंत्री बन सकता है तो हम साधारण लोग भी जिंदगी में कुछ भी कर सकतें हैं!
आपको आज यह पत्र लिखने का मन इसलिये हुआ क्योंकि आज पुण्यतिथि है देश के एक असाधारण से साधारण कवि का, जिनको आप बहुत पसंद करते है और उनकी कविताओं को हमेशा अपने भाषणों में प्रयोग करते हैं! रामधारी सिंह 'दिनकर' - समय को साधने वाला कवि, जिन्हें ‘जनकवि’ और ‘राष्ट्रकवि’ दोनों कहा गया. उन्होंने देश के क्रांतिकारी आंदोलन को अपनी कविता से स्वर दिया. जितने सुगढ़ कवि, उतने ही सचेत गद्य लेखक भी. आज़ादी के बाद पंडित नेहरू और सत्ता के क़रीब रहे. लेकिन समय-समय पर सिंहासन के कान उमेठते रहे अभी हाल ही में आपने दिनकर की कविता की कुछ पक्तियों का जिक्र लेह में सैनिको के सामने उनका मनोबल बढ़ाने के लिए किया था:
"जिनके सिंहनाद से सहमी धरती रही अभी तक डोल कलम, आज उनकी जय बोल!"
जो पूरी कविता इस प्रकार से है:
जला अस्थियाँ बारी-बारी
चिटकाई जिनमें चिंगारी,
जो चढ़ गये पुण्यवेदी पर
लिए बिना गर्दन का मोल
कलम, आज उनकी जय बोल।
जो अगणित लघु दीप हमारे
तूफानों में एक किनारे,
जल-जलाकर बुझ गए किसी दिन
माँगा नहीं स्नेह मुँह खोल
कलम, आज उनकी जय बोल।
पीकर जिनकी लाल शिखाएँ
उगल रही सौ लपट दिशाएं,
जिनके सिंहनाद से सहमी
धरती रही अभी तक डोल
कलम, आज उनकी जय बोल।
अंधा चकाचौंध का मारा
क्या जाने इतिहास बेचारा,
साखी हैं उनकी महिमा के
सूर्य चन्द्र भूगोल खगोल
कलम, आज उनकी जय बोल।
प्रधानमंत्री जी, मेरा नाम अंकुर मिश्रा है, मै कविशाला नाम की एक संस्था चलाता हूँ, जहाँ नए कवि व लेखक अपनी कविताओं और कहानियों को प्रकाशित करते हैं. साथ ही अन्य श्रेष्ठ साहित्यकारों की कविताएं, कहानियां व अन्य साहित्यिक रचनाओं को पढ़ कर उनसे सीखते हैं! हमारा प्रयास है की इन नए कवियों को हम किसी तरह से उनके कविताओं, कहानियों के जरिये धनोपार्जन करवा पायें! इन्ही कुछ प्रयासों के साथ कविशाला समाज और साहित्य सेवा में लगा हुआ है! प्रधानमत्री जी आप कविताओं और कहानियो का शौक रखते है और कभी कभी लिखते भी है! आप एक लेखक की मन की बात समझ सकते है!
मै कविशाला और देश के लाखो पाठको और लेखकों की तरफ से आपसे कुछ मांगना चाहता हूँ:
१. प्रधानमंत्री से संवाद जरूरी है उसके लिए सबसे पहले जरूरी है देश में फ़ैल रही नकारात्मक सोच को रोकना, जिसे अच्छे लोगो को पढ़कर और सुनकर ही सम्भव किया जा सकता है! क्या आप या आपकी सरकार एक सकारात्मकसोच को आगे बढ़ाने के लिए देश के युवाओं को अच्छा पढ़ने के लिए प्रेरित कर सकतें हैं! क्या आपकी सरकार कविशाला जैसी संस्थाओ से जुड़कर सोच को सकारात्मक करने का जो जरिया है वो है "अधिक से अधिक पढ़ना ", उस पर जोर दे सकती है ?
२. देश में दिनों दिन पुस्तकालय बंद होते जा रहे हैं, सरकार को और नए पुस्तकालय खोलने में जोर देना चाहिए न की पुराने खुले हुए पुस्तकालयों को बंद कराने में.!
३. जरूरी है देश के युवा लेखकों और कवियों को और पुरस्कार दिलाने की, लेखक के लिए उपहार या पुरस्कार अच्छा और बेहतर लिखने का एक सबसे बड़ा प्रोत्साहन होता है !
४. रामधारी सिंह 'दिनकर' जैसे कवियों और लेखकों की आज जरूरत है, खैर वैसे लोग महापुरुष होते है जो सदियों में कभी आते है, मगर उन जैसे सोच वाले लोगो की जरूरत है, आपको सरकार में भी ऐसे लोगो को रखना चाहिए जो गलत होने पर आपको समझा सकें, सही सलाह दे सकें!
इत्यादि
उनकी कुछ पंक्तियाँ आपके लिए:
१) आज़ादी रोटी नहीं, मगर दोनों में कोई बैर नहीं, पर कहीं भूख बेताब हुई तो आज़ादी की खैर नहीं!
२) कलमें लगाना जानते हो तो ज़रूर लगाओ, मगर ऐसी, कि फलों में अपनी मिट्टी का स्वाद रहे!
३) जब नाश मनुज पर छाता है, पहले विवेक मर जाता है!
४) साहित्य और दर्शन के महल में इतिहास की हैसियत किराएदार की होती है!
प्रिय प्रधानमंत्री जी, साहित्य समाज के लिए आईना होता है, और रामधारी सिंह 'दिनकर' जैसे कवि इस आईने को गढ़ते हैं! सरकार, देश, पत्रकार, और जनता, आईना सबके लिए जरूरी है, स्वयं को देखना समझना और जरूरत पड़ने पर बदलना ही देश के, समाज के, और व्यक्ति के उत्थान का सबसे सही रास्ता है! आपसे आशा है दिनकर जी को आप निराश नहीं करेंगे, समाज के हित में, साहित्य के हित में आप सकारात्मक कदम जरूर उठाएंगे!
हरिवंश राय बच्चन ने ‘दिनकर’ के बारे में कहा था कि इन्हें एक नहीं बल्कि गद्य, पद्य, भाषा और हिंदी-सेवा के लिए अलग-अलग चार ज्ञानपीठ पुरस्कार दिए जाने चाहिए. वो दिनकर जिन्होंने हिंदी की कई विधाओं में झंडे गाड़े. जोश भर देने वाली रचनाओं के मालिक रहे हैं रामधारी सिंह दिनकर, 23 सितंबर 1908 में बिहार के बेगुसराय जिले के सिमरिया घाट में पैदा हुए. हिंदी के साथ संस्कृत, बांग्ला, अंग्रेजी और उर्दू भी पढ़ डाली. लड़ाकू कवि टाइप रहे. उनकी कविता में एक तरफ क्रान्ति दिखती है दूसरी तरफ मुलायमियत. आज जन्मदिन है. पढ़िए उनकी कविता. ये कविता आज भी आईना दिखाती है क्योंकि दिल्ली में तो रोशनी है लेकिन बाकी देश में अंधेरा ही है. कौन जानना चाहता है कि मिजोरम की गलियों में क्या हो रहा है, किसे पता है उड़ीसा के किसी गांव में बच्चों को कौर मिल रहा है या नहीं!
एक बार तो उन्होंने भरी राज्यसभा में नेहरू की ओर इशारा करते हए कहा-
देश में जब भी हिंदी को लेकर कोई बात होती है, तो देश के नेतागण ही नहीं बल्कि कथित बुद्धिजीवी भी हिंदी वालों को अपशब्द कहे बिना आगे नहीं बढ़ते। पता नहीं इस परिपाटी का आरम्भ किसने किया है, लेकिन मेरा ख्याल है कि इस परिपाटी को प्रेरणा प्रधानमंत्री से मिली है। पता नहीं, तेरह भाषाओं की क्या किस्मत है कि प्रधानमंत्री ने उनके बारे में कभी कुछ नहीं कहा, किन्तु हिंदी के बारे में उन्होंने आज तक कोई अच्छी बात नहीं कही। मैं और मेरा देश पूछना चाहते हैं कि क्या आपने हिंदी को राष्ट्रभाषा इसलिए बनाया था ताकि सोलह करोड़ हिंदीभाषियों को रोज अपशब्द सुनाएं? क्या आपको पता भी है कि इसका दुष्परिणाम कितना भयावह होगा? - दिनकर
धन्यवाद!
अंकुर मिश्रा
कविशाला
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