सुदामा पांडेय 'धूमिल' हिंदी साहित्य के समकालीन कविता के दौर के प्रसिद्ध कवि रहे है। ये अपनी कविताओं के माध्यम से समाज और राजनीतिक बुराइयों के प्रति तीखा तंज कसते थे। विफल जनतंत्र के साथ आम आदमी की विवशता और उच्च मध्यवर्गों के आपराधिक चरित्रों को कविता के माध्यम से चित्रित करने में धूमिल का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। इनका रहन सहन इतना साधारण था कि उनकी मृत्यु के समाचार रेडियो पर सुनने के बाद उनके घर वालो को पता लगा कि वे इतने बड़े प्रसिद्ध कवि थे, लेकिन यहाँ वे अस्वस्थ बने रहे।
उन्होंने देश और समाज मे व्याप्त बुराइयां, कुरीतियां, लोगो का शोषण, लोगो के अधिकारों का दमन जैसे विषयों पर अपनी कविता के माध्यम से सन्देश दिया। भाषा-शैली के स्तर में भी अपनी अलग पहचान बनाई। इनकी भाषा काव्य-सत्य को जीवन सत्य के अधिकाधिक निकट लाती है। इनकी भाषा मे आक्रमकता, तीखेपन एवं व्यंग्य के साथ ग्रामीण जीवन की सरलता भी है।
प्रस्तुत है सुदामा पांडेय जी की कुछ कविताएं :-
(i) " हरित क्रान्ति "
इतनी हरियाली के बावजूद अर्जुन को नहीं मालूम ,
उसके गालों की हड्डी क्यों उभर आई है।
उसके बाल सफ़ेद क्यों हो गए हैं।
लोहे की छोटी-सी दुकान में बैठा हुआ आदमी
सोना और इतने बड़े खेत में खड़ा आदमी
मिट्टी क्यों हो गया है ।
व्याख्या : इसमें कवि कहता है कि, खेतों में हर तरफ हरियाली होते हुए भी, अर्जुन के गालों पर गरीबी से 'गालों की हड्डी' उभर आई है। उसके बाल सफेद हो गए हैं। एक छोटी सी लोहे की दुकान पर बैठा हुआ आदमी सोना बना रहा है और इतने बड़े खेत में खड़ा हुआ आदमी मिट्टी से जुड़कर मिट्टी की हैसियत वाला हो गया है।
(ii) " सिलसिला "
हवा गरम है और धमाका एक हलकी-सी रगड़ का
इंतज़ार कर रहा है कठुआये हुए चेहरों की रौनक
वापस लाने के लिए उठो और हरियाली पर हमला करो
जड़ों से कहो कि अंधेरे में बेहिसाब दौड़ने के बजाय
पेड़ों की तरफदारी के लिए ज़मीन से बाहर निकल पड़े
बिना इस डर के कि जंगल सूख जाएगा
यह सही है कि नारों को नयी शाख नहीं मिलेगी
और न आरा मशीन को नींद की फुरसत
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