ओम चित्रगुप्ताय नमः
— चित्रगुप्त जी का मंत्र
भईया दूज के त्योहार को यमदित्या भी कहा जाता है। यमदित्या के दिन यमराज जी और चित्रगुप्त जी की पूजा की जाती है।
चित्रगुप्त जी की जन्म कथा :-
ऐसा माना जाता है के, जब यमराज जी का जन्म हुआ तब उन्हें धर्मराज की पद प्रदान की गई थी। धर्मानुसार उन्हें जीवों को दण्ड देने का कार्य सौंपा गया था। और उनको अपने लिए एक लेखाकार सहयोगी की आवश्यकता हुई। धर्मराज की इस माँग पर ब्रह्मा जी समाधिस्थ हो गये और एक हजार वर्ष की तपस्या के बाद जब वे समाधि से बाहर आए तो उन्होंने अपने समक्ष एक तेजस्वी पुरुष को खड़े पाया। जिसने उन्हें बताया कि, उन्हीं के शरीर से उसका जन्म हुआ है। तब ब्रह्मा जी ने उसे "चित्रगुप्त" नाम दिया।
चित्रगुप्त जी "कायस्थ " कैसे कहलाए गए :-
क्योंकि इस पुरूष का जन्म ब्रह्मा जी की काया से हुआ था, इसीलिए ये "कायस्थ " कहलाये गए। कायस्थ शब्द का शाब्दिक अर्थ होता अपने शरीर में स्थित। अपनी इन्द्रियों पर जिसका पूर्ण नियन्त्रण हो गया हो वह भी कायस्थ कहलाता है।
साथ ही चित्रगुप्त का विवाह सूर्य की पुत्री यमी से हुआ था। इस तरह से चित्रगुप्त रिश्ते में यमराज के बहनोई हैं। यमराज और यमी भाई-बहन हैं और उन्हें सूर्य की जुड़वा संतान माना जाता है। यमी ने बाद में यमुना का रूप धारण कर लिया और वह धरती पर यमुना नदी के रूप में बहने लगीं।
चित्रगुप्त का यमराज जी की अदालत में महत्व :-
भगवान चित्रगुप्त एक कुशल लेखक हैं और इनकी लेखनी से जीवों को उनके कर्मों के अनुसार न्याय प्राप्त होता है। आज के दिन धर्मराज यम और चित्रगुप्त की पूजा अर्चना करके उनसे अपने दुष्कर्मों के लिए क्षमा याचना का भी विधान है।
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