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पवन दीक्षित (विजेंद्र शर्मा)

Kavishala DailyKavishala Daily March 9, 2023
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क ऐसी सख्सियत जिनके शब्द बशीर बद्र के लगते है क्योंकि इस मिजाज़ में वही अपने शेर को बयान करते हैं, अंदाज़े शेर में उसका भी अलग मुक़ाम जिनहोने "वाह वाह क्या बात है" जैसे धारावाहिक में अपने गीतों और शेरों को सुनाया और "poerty festivals" में उन्हें ज़ोरो शोरो से सुना जाता है हम यहाँ बात कर रहे हैं पवन दीक्षित कि जिनके कविताओं, गीतों, ग़ज़लों और कौटस को सुनने के बाद अलग ही आनंद का एसएस होता है। दिल्ली के इंडिया हैबिटेट सेंटर में भारत और पाकिस्तान के बीच संबंधो पे परिचर्चा थी ,सितम्बर ,2003 की बात है शायद , प्रख्यात पत्रकार और कालम- नवीस कुलदीप नैयर मुख्य वक्ता थे। दोनों मुल्कों के संबंधों पे बहस हुई किसी ने कुछ कहा ,किसी ने कुछ आख़िर में कुलदीप नैयर साहब ने अपना भाषण इन दो मिसरों से ख़त्म किया :-------

यार हम दोनों को ही ये दुश्मनी महँगी पड़ी

रोटियों का ख़र्च तक बन्दूक पर होने लगा

ये सुनते ही जो काव्ये से जुड़े उनके ज़हन में ये ज़रूर आगयेगा ये शे'र पक्का बशीर बद्र का होगा क्यूंकि इस मिज़ाज का वही कहते हैं। कुछ दिनों बाद दिल्ली के मशहूर डी.सी.एम् कवि सम्मलेन हुआ,अशोक चक्रधर साहब संचालन कर रहे थे उन्होंने कहा कि ग़ज़ल की एक ऐसी आवाज़ को आवाज़ दे रहा हूँ जिसे सुनकर लहजा भी महक उठता है और ग़ज़ल भी। वो आवाज़ थी पवन दीक्षित, आते ही मंच को प्रणाम करके उन्होंने बिना किसी तमहीद (भूमिका ) के एक मतला और दो शे'र पढ़े

जो यू दिन ब दिन खुशहाल ये जो मेरा घर होने लगा

हो ना हो माँ कि दुआओं का असर होने लगा

यार हम दोनों को ही ये दुश्मनी महँगी पड़ी

रोटियों का ख़र्च तक बन्दूक पर होने लगा

दूसरा शे'र सुनते ही मुझे कुलदीप नैयर साहब द्वारा कोट किया उस दिन वाला शे'र याद आ गया। किसी शाइर का शे'र अगर कहीं भाषण , आलेख या किसी और मंच पे जब कोट होने लग जाए तो मान लेना चाहिए कि वो शे'र आवारा हो गया है और आवारा शे'र फिर अपना सफ़र ख़ुद तय करता है ,किसी शाइर का एक मतला याद आया :-

दुश्मन को भी प्यारा हो जाता है

अच्छा शे'र आवारा हो जाता है

इसके बाद पवन दीक्षित को सुनने और उनके बारे में और जानने की इच्छा ने सबके ज़हन में जन्म ले लिया। उसी कवि सम्मलेन में उन्होंने एक गीत सुनाया जिसे सुनकर तो बस पूरा पांडाल वाह - वाह कर उठा। उस वक़्त का ताज़ा घटनाक्रम था ,पाकिस्तान से एक बच्ची भारत अपना इलाज़ करवाने आई थी। दोनों मुल्कों के बीच संसद पे हमले के बाद तल्खियां और बढ़ गई थी। बच्ची का नाम था 'नूर फातिमा' बच्ची के दिल में छेद था और उसका इलाज़ बेंगलोर के किसी अस्पताल में हुआ। बच्ची का सफल ओपरेशन हुआ बच्ची पुनः अपने देश लौट गई। बस इसी बात को पवन दीक्षित ने गीत बनाया ,उनका कहना ये था कि अगर नूर फातिमा पाकिस्तान जाते वक़्त मुझे मिलती तो मैं उससे ये कहता, गीत का कुछ हिस्सा यूँ था :-

जैसा मिला दुलार यहाँ नूर फातिमा।

जाकर उन्हें बताना वहाँ नूर फातिमा। ।

कहना के सारे मुल्क की धड़कन सी रुक गई

लोगों की दुआओं से खुदाई भी झुक गई

अटकी थी सबकी तुझमे ही जाँ नूर फातिमा

जैसा मिला दुलार यहाँ नूर फातिमा।

बतलाना उन्हें कैसे करिश्मा सा कर दिया

दिल का सुराख हमने मुहब्बत से भर दिया

ऐसा मिलेगा प्यार कहाँ नूर फातिमा। ।

पवन दीक्षित के कलाम का वहाँ हर कोई दीवाना हो गया कुछ दिनों बाद अशोक चक्रधर साहब का सब टी वी पे वाह- वाह कार्यक्रम आया था उस दिन शो में पाकिस्तान के अज़ीम शाइर मरहूम अहमद फ़राज़ भी मौजूद थे और पवन दीक्षित भी ,अशोक जी ने पवन भाई से वही "नूर फातिमा "वाला गीत सुनाने का आग्रह किया। गीत के आख़िरी बन्द में पवन दीक्षित साहब ने अहमद फ़राज़ साहब की तरफ़ मुखातिब हो ये बन्द पढ़ा :-

-एलाने - दोस्ती का सबब चाहते हैं हम

असला नहीं वहाँ का अदब चाहते हैं हम

साहित्य हो यहाँ का वहाँ नूर फातिमा।

जाकर उन्हें बताना वहाँ नूर फातिमा। ।

गीत के आख़िरी बन्द को सुन अहमद फ़राज़ साहब ने उन्हें गले लगा लिया। फ़राज़ साहब मन ही मन अपने मुल्क की कारस्तानियों पे शर्मिन्दा भी हुए ,ये उनके चेहरे से साफ़ ज़ाहिर हो रहा था ये कथन बिल्कुल सही है कि शाइर बनाया नहीं जा सकता वो तो पैदा ही शाइर होता है। पवन दीक्षित के अन्दर का शाइर भी 30 -35 बरस जगा नहीं और जब जगा तो ऐसे - ऐसे शे'र कहे जिन्हें बड़े - बड़े लोग कोट करते हैं।

पवन दीक्षित का जन्म संगीत के मर्मज्ञ स्व. श्री रामेश्वर प्रसाद दीक्षित के यहाँ 12 दिसंबर, 1962 को द्रोणाचार्य की भूमि दनकौर में हुआ।

इनकी शुरूआती शिक्षा - दीक्षा भी दनकौर क़स्बे में ही हुई। शाइरी की तरफ़ इनका रुझान सिर्फ़ सुनने तक का था शायद उन्हें ख़ुद पता नहीं था कि एक दिन वे शे'र कहने लग जायेंगे मगर जिस इन्सान को अपने बुज़ुर्गों का आशीर्वाद मिला हो वो जिस राह पे चल पड़े कामयाबी तो फिर उसके कदम चूमती ही हबतौर शाईर पवन दीक्षित की उम्रतक़रीबन 12 -13 बरस ही है। ग़ज़ल के प्रति इमानदार होने का पहला सबक पवन दीक्षित ने अपने उस्ताद मंगल "नसीम" से सीखा और इसी वजह से अपने उस्ताद के वे सब से पसंदीदा शागिर्द भी हैपवन दीक्षित का ये शे'र तो उनका हवाला बन गया है :----

माँ रोज़ जेब देखे है बेरोज़गार की

बेटे की जेब में कहीं सलफास तो नहीं

पवन दीक्षित की शाईरी की सबसे बड़ी ख़ासियत उनका 'कहन' है। शे'र में शेरियत का ज़िन्दा होना और आम बोलचाल के लफ़्ज़ों को खूबसूरती से काग़ज़ के कैनवास पे उतारने के हुनर से भी परवरदिगार ने उनको नवाज़ा है। उनके ये अशआर सुनकर आप मेरी बात से इतिफाक़ रखने पे मजबूर हो जायेंगे।

मेरे ऐब को भी बताये हुनर

मेरे यार तू भी ख़तरनाक है

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