
भारत में कई स्वतंत्रता सेनानी है जिन्होंने कदम कदम पर भारत के लिए और ब्रिटिशों के विरुद्ध अपना पूरा योगदान दिया था उन्ही में से एक हमारे भारत के नरहर विष्णु गाडगील भी थे। इन्होने स्वतन्त्र भारत के प्रथम नेहरू मन्त्रिमण्डल में ऊर्जा मंत्री के रूप में कार्य किया। नरहर विष्णु गाडगील सिर्फ स्वतंत्रता सेनानी ही नहीं भारत के एक राजनेता, अर्थशास्त्री और लेखक भी थे। जिस समय भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन चल रहा था उस दौरान उन्हें लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक, महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू और वल्लभभाई पटेल ने गाडगिल को प्रभावित किया। सबसे पहले उन्होंने अपनी कानूनी डिग्री प्राप्त की और अपनी कानूनी डिग्री प्राप्त करने के तुरंत बाद ही भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल हो गए और राष्ट्रीय स्वतंत्रता आंदोलन में अपनी सक्रिय भागीदारी शुरू कर दी। और इनकी भागीदारी से ये बात पूरी तरह ज़ाहिर थी की ब्रिटिश शासन को गुस्सा आना था और यही वजह थी उन्हें आठ बार कारावास का सामना करना पड़ा और कार्य उनका यहीं तक सीमित नहीं रहा उनकी ये राजनैतिक जीवन की शुरुआत थी
भारत के स्वतंत्रता-पूर्व दिनों में, गाडगिल ने पूना जिला कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष के रूप में 1921–1925 कार्य किया। वे 1934 में केंद्रीय विधान सभा (भारतीय ब्रिटिश संसद) के लिए चुने गए। बाद में उन्होंने बॉम्बे राज्य की विधानसभा में कांग्रेस विधायक दल के सचेतक के रूप में 1935 - 1945 तक कार्य किया।
गाडगील 1946 में बॉम्बे राज्य से भारत की संविधान सभा के लिए मनोनीत किए गए। स्वतंत्रता प्राप्ति के उपरांत नेहरू मंत्रिमंडल में 15 अगस्त 1947 से 12 दिसंबर 1950 तक) उन्होंने देश के पहले ऊर्जा मंत्री के रूप कार्य किया।
केंद्रीय मंत्रिमंडल में अपने पहले वर्ष में, उन्होंने 1947 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में भारत की गतिविधियों के एक हिस्से के रूप में कश्मीर में जम्मू के रास्ते पठानकोट से श्रीनगर तक एक सैन्य-कैलिबर सड़क बनाने की परियोजना शुरू की। कैबिनेट मंत्री के रूप में, उन्होंने भाखड़ा, कोयना और हीराकुंड बांधों से संबंधित महत्वपूर्ण विकास परियोजनाओं की शुरुआत की।
गाडगील 1952 के संसदीय चुनावों में पुणे संसदीय सीट से कांग्रेस प्रत्याशी के रूप में लोकसभा के लिए चुने गए। चुनाव बाद वे 1952-1955 की अवधि के दौरान कांग्रेस कार्यसमिति के सदस्य चुने गए।
गाडगिल ने (15 सितंबर 1958 से 1 अक्टूबर 1962) तक पंजाब के राज्यपाल के रूप में कार्य किया और फिर बाद में उन्होंने (1964 से 1966) तक, सावित्रीबाई फुले पूना विश्वविद्यालय, के कुलपति के रूप में कार्य किया।
12 जनवरी 1966 को पूना विश्वविद्यालय के कुलपति के रूप में उन्होंने इस दुनिया को अलविदा कह दिया।
उनकी राजनीतिक विरासत उनके पुत्र पीढ़ी विट्ठलराव गाडगिल ने संभाली। जो 1980, 1984, 1989 के संसदीय चुनावों में कांग्रेस प्रत्याशी के रूप में पुणे लोकसभा क्षेत्र से सांसद चुने गए, और उनके पोते अनंत गाडगिल वर्तमान में महाराष्ट्र प्रदेश कांग्रेस कमेटी के प्रवक्ता हैं।
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