
भारत में कई साहित्यकार अपने लेख और सोच की वजह से प्रसिद्ध थे और आज भी हैं जिनमे से एक हरिभाऊ उपाध्याय भी थे। हरिभाऊ उपाध्याय भारत के प्रसिद्ध साहित्यकार तथा राष्ट्रसेवी थे। उनकी हिन्दी साहित्य को विशेष देन उनके द्वारा बहुमूल्य पुस्तकों का रूपांतरण है। कई मौलिक रचनाओं के अतिरिक्त उन्होंने जवाहरलाल नेहरू की 'मेरी कहानी' और पट्टाभि सीतारमैया द्वारा लिखित 'कांग्रेस का इतिहास' का हिन्दी में अनुवाद किया। हरिभाऊ जी की अनेक पुस्तकें आज हिन्दी साहित्य जगत को प्राप्त हो चुकी हैं। महात्मा गाँधी से प्रभावित होकर हरिभाऊ उपाध्याय राष्ट्रीय आन्दोलन में कूद पड़े थे। पुरानी अजमेर रियासत में उन्हें कई बार जेल जाना पड़ा। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद वे अजमेर के मुख्यमंत्री निर्वाचित हुए थे।
बात की जाए हरिभाऊ जी की तो उनका जन्म 24 मार्च, 1892 को मध्य प्रदेश में उज्जैन ज़िले के भौंरोसा नामक गाँव में हुआ था। विद्यार्थी जीवन से ही इनके मन में साहित्य के प्रति चेतना जाग्रत हो गई थी। संस्कृत के नाटकों तथा अंग्रेज़ी के प्रसिद्ध उपन्यासों के अध्ययन के बाद ये उपन्यास लेखन की अग्रसर हुए।
हरिभाऊ उपाध्याय ने हिन्दी सेवा से सार्वजनिक जीवन आरम्भ किया और पहले पहल 'औदुम्बर' मासिक पत्र के प्रकाशन द्वारा हिन्दी पत्रकारिता जगत में पर्दापण किया। सबसे पहले सन 1911 ई. में वे 'औदुम्बर' के सम्पादक बने। पढ़ते-पढ़ते ही इन्होंने इसके सम्पादन का कार्य भी आरम्भ किया। 'औदुम्बर' में अनेक विद्वानों के विविध विषयों से सम्बद्ध पहली बार लेखमाला निकली, जिससे हिन्दी भाषा की स्वाभाविक प्रगति हुई। इसका श्रेय हरिभाऊ के उत्साह और लगन को ही है। सन 1915 ई. में हरिभाऊ उपाध्याय महावीर प्रसाद द्विवेदी के सान्निध्य में आये। हरिभाऊ जी स्वयं लिखते हैं कि- "औदुम्बर की सेवाओं ने मुझे आचार्य द्विवेदी जी की सेवा में पहुंचाया।" द्विवेदी जी के साथ 'सरस्वती' में कार्य करने के पश्चात् हरिभाऊ उपाध्याय ने 'प्रताप', 'हिन्दी नवजीवन' (सन 1921) और 'प्रभा' के सम्पादन में योगदान दिया और स्वयं 'मालव मयूर' (सन 1922) नामक पत्र निकालने की योजना बनायी; किंतु यह पत्र अधिक दिन नहीं चल सका। बात की जाए उनके राजनैतिक जीवन की तो महात्मा गाँधी से प्रभावित होकर हरिभाऊ उपाध्याय 'भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन' में कूद पड़े थे। पुरानी अजमेर रियासत में इन्हें कई बार जेल जाना पड़ा। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद ये अजमेर के मुख्यमंत्री निर्वाचित हुए थे। हरिभाऊ जी हृदय से ये अत्यंत कोमल थे, किंतु सिद्धांतों पर कोई समझौता नहीं करते थे। राजस्थान की सब रियासतों को मिलाकर राजस्थान राज्य बना और इसके कई वर्षों बाद मोहनलाल सुखाड़िया मुख्यमंत्री बने थे। उन्होंने अत्यंत आग्रहपूर्वक हरिभाऊ उपाध्याय को पहले वित्त फिर शिक्षामंत्री बनाया था। बहुत दिनों तक ये इस पद पर रहे, किंतु स्वास्थ्य ठीक न रहने के कारण अंतत: त्यागपत्र दे दिया। हरिभाऊ उपाध्याय कई वर्षों तक राजस्थान की 'शासकीय साहित्य अकादमी' के अध्यक्ष भी रहे। उन्होंने 'महिला शिक्षा सदन', हटूँडी (अजमेर) तथा 'सस्ता साहित्य मंडल' की स्थापना की थी। इतना कुछ अपने जीवन में कर उन्होंने 25 अगस्त, 1972 को इस दुनिया से विदा लिया।
No posts
No posts
No posts
No posts
Comments