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अपने ही भाई को हम-साया बनाते क्यूँ हो | मुश्ताक़ आज़र फ़रीदी

Kavishala DailyKavishala Daily May 24, 2023
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अपने ही भाई को हम-साया बनाते क्यूँ हो

सहन के बीच में दीवार लगाते क्यूँ हो


इक न इक दिन तो उन्हें टूट बिखरना होगा

ख़्वाब फिर ख़्वाब हैं ख़्वाबों को सजाते क्यूँ हो


कौन सुनता है यहाँ कौन है सुनने वाला

ये समझते हो तो आवाज़ उठाते क्यूँ हो


ख़ुद को भूले हुए गुज़रे हैं ज़माने यारो

अब मुझे तुम मिरा एहसास दिलाते क्यूँ हो

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