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अपने ही भाई को हम-साया बनाते क्यूँ हो | मुश्ताक़ आज़र फ़रीदी

Kavishala DailyKavishala Daily May 24, 2023
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अपने ही भाई को हम-साया बनाते क्यूँ हो

सहन के बीच में दीवार लगाते क्यूँ हो


इक न इक दिन तो उन्हें टूट बिखरना होगा

ख़्वाब फिर ख़्वाब हैं ख़्वाबों को सजाते क्यूँ हो


कौन सुनता है यहाँ कौन है सुनने वाला

ये समझते हो तो आवाज़ उठाते क्यूँ हो


ख़ुद को भूले हुए गुज़रे हैं ज़माने यारो

अब मुझे तुम मिरा एहसास दिलाते क्यूँ हो


अपने चेहरों पे जो ख़ुद आप ही पत्थर फेंकें

ऐसे लोगों को तुम आईना दिखाते क्यूँ हो


अपनी तक़दीर है तूफ़ानों से लड़ते रहना

अहल-ए-साहिल की तरफ़ हाथ बढ़ाते क्यूँ हो


आज के दौर का मौसम है ग़ुबार-आलूदा

आइने पर कोई तहरीर बिछाते क्यूँ हो


कुछ दलाएल कोई मा'नी नहीं रखते 'आज़र'

कहने वाले की हर इक बात पे जाते क्यूँ हो

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