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मै प्रेषित प्रेम अनोखा हूँ
तू पत्र स्याही की लाली है
मै मन का मारा व्याकुल हूँ
तू मन के ज्योति की लाली है
मै तो काली रजनी सा हूँ
तू चाँदनी रंग की प्याली है
तू वही कुमुद,जूही है
जिसके सुगंध का मारा हूँ
तू वही बसंती पगली पवन है
जिसमे घुलने को तरसा हूँ
तू वही निर्झरा शीतल जल है
जिसके पावन एहसास को ठहरा हूँ
तू उदित सूर्य की सुर्ख किरण है
मै करूण कली की कोमलता
तू बादल मे सृजित बूँद है
मै सीप मे मोती सा
प्रिये प्रेम तो अजर अमर है
बस गया मन मे प्रेम दिव्य सा ..........।।
तू पत्र स्याही की लाली है
मै मन का मारा व्याकुल हूँ
तू मन के ज्योति की लाली है
मै तो काली रजनी सा हूँ
तू चाँदनी रंग की प्याली है
तू वही कुमुद,जूही है
जिसके सुगंध का मारा हूँ
तू वही बसंती पगली पवन है
जिसमे घुलने को तरसा हूँ
तू वही निर्झरा शीतल जल है
जिसके पावन एहसास को ठहरा हूँ
तू उदित सूर्य की सुर्ख किरण है
मै करूण कली की कोमलता
तू बादल मे सृजित बूँद है
मै सीप मे मोती सा
प्रिये प्रेम तो अजर अमर है
बस गया मन मे प्रेम दिव्य सा ..........।।
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