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हुक्म-ए-क़िदम से बा-ख़बर आशिक़िय्यत,
आपकी नज़रों से पढ़ा ए'तिमाद-ए-दिल ने।
फलाह होकर भी आपसे धरकने धरकती हैं,
पाकीजा दर बदर फिरता हूँ तुम्हारी अगन में ।।
✍️ चिदानंद कौमुदी
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