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ये गांव की बस्ती
ये शहरो समंदर
ये लोगों की हस्ती
ये ठहरा सा मंजर
वो कूल्हों की धारा
ये बेघर सी गाये
वो धूपो की माला
ये सन सन हवाये
ये चूल्हों की ज्वाला
वो पेड़ों की छाये
वो कमसिन सी बाला
ये उसकी कलाये
वो फूलों की माला
ये घनघोर घटाये
वो उड़त
ये शहरो समंदर
ये लोगों की हस्ती
ये ठहरा सा मंजर
वो कूल्हों की धारा
ये बेघर सी गाये
वो धूपो की माला
ये सन सन हवाये
ये चूल्हों की ज्वाला
वो पेड़ों की छाये
वो कमसिन सी बाला
ये उसकी कलाये
वो फूलों की माला
ये घनघोर घटाये
वो उड़त
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