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नज़र के टीके की जरुरत मुझे थी
लगाकर खुद नजरों के सामने से आए दिन जाया करती थी
कैसे कहुँ मैं सिर्फ़ जिस्म रह जाता था जिसकी रूह उसे हर बार छूकर आया करती थी।
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लगाकर खुद नजरों के सामने से आए दिन जाया करती थी
कैसे कहुँ मैं सिर्फ़ जिस्म रह जाता था जिसकी रूह उसे हर बार छूकर आया करती थी।
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