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जो बन पाया वो तुल गया नसीबो से
जो बन न पाया वो रह गया उम्मीदो का
मैं एक इंसानी सिक्का खनकता रहा कुछ बन पाने के बाजारो में
मन की सब इच्छाओ का इन्ही बाजारो में सरेआम कत्लेआम हुआ
मै न चाहकर भी बना एक मोहरा जो बना कातिल खुद की इच्छाओ का
जिस्का दर्ज भी न जुर्म और ना ही कही पर नाम हुआ
मै इस भड़
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