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ज़िद पर अड़े रहे अगर तो,
समाधान कोई नहीं।
कर्तव्य न हो जब तक,
अधिकार की पात्रता भी नहीं।
मन, बुद्धि और अहंकार में,
एकता का रास्ता दिखता नहीं।
मनुजता को जब तक न पहचाने,
मतभेद मिटाने का कोई प्रावधान भी नहीं।
साँसों के आने-जाने पर,
कहीं कोई रोक नहीं।
पर कब तक चलता रहेगा,
उस वक़्त का ए'तिबार भी नही।
-© कामिनी मोहन पाण्डेय
-काव्यस्यात्मा।
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