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तेरे दर को छोड़ के कहाँ जाऊँगा,
तेरे एहसाँ को कैसे चुका पाऊँगा।
जीवन की गाड़ी पटरी से जो उतरी कभी,
दी है ख़ुशियाँ छाई जो मायूसी कभी।
फैलाया जब भी मैंने दामन अपना,
भर दिया खाली न रहा दामन अपना।
प्रीत की हर रीति निभा दी तुमने,
साक्षी बन हर प्रीत निभा दी तुमने।
तुमसे मिला हर पल नया गीत मुझे,
ये है एहसाँ तुमने दिया संगीत मुझे।
- © कामिनी मोहन पाण्डेय
तेरे एहसाँ को कैसे चुका पाऊँगा।
जीवन की गाड़ी पटरी से जो उतरी कभी,
दी है ख़ुशियाँ छाई जो मायूसी कभी।
फैलाया जब भी मैंने दामन अपना,
भर दिया खाली न रहा दामन अपना।
प्रीत की हर रीति निभा दी तुमने,
साक्षी बन हर प्रीत निभा दी तुमने।
तुमसे मिला हर पल नया गीत मुझे,
ये है एहसाँ तुमने दिया संगीत मुझे।
- © कामिनी मोहन पाण्डेय
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