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तेरे दर को छोड़ के कहाँ जाऊँगा,
तेरे एहसाँ को कैसे चुका पाऊँगा।
जीवन की गाड़ी पटरी से जो उतरी कभी,
दी है ख़ुशियाँ छाई जो मायूसी कभी।
फैलाया जब भी मैंने दामन अप
तेरे एहसाँ को कैसे चुका पाऊँगा।
जीवन की गाड़ी पटरी से जो उतरी कभी,
दी है ख़ुशियाँ छाई जो मायूसी कभी।
फैलाया जब भी मैंने दामन अप
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